मेरे सवप्न की तरंग
मेरे स्वप्न की तरंग , भरे मन मैं उमंग
ह्रदय मैं बसी तमन्नाओं को जैसे
झिंझोड़ सी देती है |
मेरे जीवन के सागर को जैसे
एक छोर सा देती है|
ना स्वप्न की सीमा, ना इसको बंधन |
मधुरता इसकी ऐसी ,दिल करे करता रहूँ अभिनन्दन |
शुद्धता इसकी ऐसी ,जैसे अमृत का प्याला हो |
घूमता हूँ इसकी मोहब्बत की गलियों मैं ,
किसी से नफरत का ख्याल जैसे दिल से निकला हो |
मेरे स्वप्न की तरंग , भरे मन मैं उमंग |
मस्तिष्क मैं ठहरे ,
गूंगे और बहरे ,विचारों को जैसे शोर सा देती है |
कहती है ,तुझमें ना कोई विकार है ,
आँख खोल तेरा हर सपना साकार है |
कुछ करने को ,आगे बढ़ने को ,
नसों मैं बहते रक्त को जैसे जोर सा देती है |
मेरे स्वप्न की तरंग , भरे मन मैं उमंग
मेरे जीवन के सागर को जैसे
एक छोर सा देती है|
अति उत्तम
ReplyDeletedhanyavad shrimaan...
Deletekya baat kya baat kya baat !!!!!!
ReplyDeletedhanyavad dost...
Deletekavi satyendra ki jai ho!! awesome poem bro :)
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