मेरे स्वप्न की तरंग , भरे मन मैं उमंग
ह्रदय मैं बसी तमन्नाओं को जैसे
झिंझोड़ सी देती है |
मेरे जीवन के सागर को जैसे
एक छोर सा देती है|
ना स्वप्न की सीमा, ना इसको बंधन |
मधुरता इसकी ऐसी ,दिल करे करता रहूँ अभिनन्दन |
शुद्धता इसकी ऐसी ,जैसे अमृत का प्याला हो |
घूमता हूँ इसकी मोहब्बत की गलियों मैं ,
किसी से नफरत का ख्याल जैसे दिल से निकला हो |
मेरे स्वप्न की तरंग , भरे मन मैं उमंग |
मस्तिष्क मैं ठहरे ,
गूंगे और बहरे ,विचारों को जैसे शोर सा देती है |
कहती है ,तुझमें ना कोई विकार है ,
आँख खोल तेरा हर सपना साकार है |
कुछ करने को ,आगे बढ़ने को ,
नसों मैं बहते रक्त को जैसे जोर सा देती है |
मेरे स्वप्न की तरंग , भरे मन मैं उमंग
मेरे जीवन के सागर को जैसे
एक छोर सा देती है|
शब्द
ये शब्द हमें कितना कुछ सिखाते हैं ,ये शब्द ही तो हैं जो नए गीत बनाते हैं ।
इन शब्द से जिंदगी की नयी परिभाषा उभर कर आती है,
वर्ना जिंदगी का क्या है ,
बेरंग है ,पानी की तरह बहे जाती है ।
ये शब्द ही हमें जीवन का हर मोड़ दिखाते हैं ।
कभी बिलखते हुए छोड़ देते हैं ,
तो कभी हँस कर गले लगाते हैं ।
इन शब्दों ने ,
कभी इतनी ममता दी है ,
की पत्थर भी पिघल जाये।
कभी इतना आक्रोश जताया
की दिल भी पत्थर बन आये ।
ये शब्द ही तो हैं
जो हर पल को बयान करते हैं।
कुछ शब्द जो, हर पल में दस्तक देते हैं,
दिल में बस जाते हैं ।
ये शब्द हमें कितना कुछ सिखाते हैं।
आँगन
देखा था कभी उनको दिल के आँगन मेंबैठे थे चुप ,ख़ामोशी दबाए हुए अपनी बाँहों में ।
वही ख़ामोशी थी उनकी आवाज
जो बनाती थी साज़ ।
उनकी हर अदाएँ गाती थी गीत ,
बनाती थी मीत ,और लाती थी पास।
शायद हम फिर मिलेंगे ,
इस आँगन में फिर गुल खिलेंगे ।
नजदीकियाँ बढेंगी,
कभी उनके भी दिल से आएगी आवाज ,
क्यूँ गए थे इस आँगन से हम ,
कुछ तो हैं इस आँगन में खास ।
ओझल सपना
आँखों से ओझल हुआ एक सपना ,अब नजर ना आया,पर लगता था अपना ।
देखा था कभी उसको पलकों के पीछे
एक प्यारी सी सूरत, नजर आती थी आँखों मींचे ।
सूरत कुछ अनजानी-सी
अनजानी वो मूरत थी ,जानी पहचानी सी ।
न जाने वो कहाँ गई
क्यों आँखों से ओझल हुआ ये सपना ।
अब तो, देखूँ जहाँ सच्चाई गुम हो जाती है
न जाने क्यूँ ,होश में रहकर भी नींद आती है ।
जी करता है फिर मिल जाए वो अपना
क्यों आँखों से ओझल हुआ ये सपना ।
सुना है सपने भी पूरे होते हैं
बिना पानी के,बादल अधूरे होते हैं ।
बरस जाए पानी ,सूना है ये अंगना
क्यों आँखों से ओझल हुआ ये सपना ।
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