Poetry Room


मेरे स्वप्न की तरंग , भरे मन मैं उमंग 
ह्रदय मैं बसी तमन्नाओं को जैसे 
झिंझोड़ सी देती है |
मेरे जीवन के सागर को जैसे  
एक छोर सा देती है|

ना स्वप्न की सीमा, ना इसको बंधन | 
मधुरता इसकी ऐसी ,दिल करे करता रहूँ अभिनन्दन |
शुद्धता इसकी ऐसी ,जैसे  अमृत का प्याला हो |
घूमता हूँ इसकी मोहब्बत की गलियों मैं ,
किसी से नफरत का ख्याल जैसे  दिल से निकला हो |

मेरे स्वप्न की तरंग , भरे मन मैं उमंग |
मस्तिष्क मैं ठहरे ,
गूंगे और बहरे ,विचारों को जैसे शोर सा देती है |
कहती है ,तुझमें ना कोई विकार है ,
आँख खोल तेरा हर सपना साकार है |

कुछ करने को ,आगे बढ़ने को ,
नसों मैं बहते रक्त को जैसे जोर सा देती है |
मेरे स्वप्न की तरंग , भरे मन मैं उमंग
मेरे जीवन के सागर को जैसे  
एक छोर सा देती है|



शब्द

ये शब्द हमें कितना कुछ सिखाते हैं ,
ये शब्द ही तो हैं जो नए गीत बनाते हैं ।

इन शब्द से जिंदगी की नयी परिभाषा  उभर कर आती है, 
वर्ना  जिंदगी का क्या है ,
बेरंग है  ,पानी की तरह बहे जाती है ।

ये शब्द ही हमें जीवन  का हर मोड़ दिखाते हैं  ।
कभी बिलखते हुए छोड़ देते हैं , 
तो कभी हँस  कर गले लगाते हैं ।

इन शब्दों ने ,
कभी इतनी ममता दी है ,
की पत्थर भी पिघल जाये। 
कभी इतना आक्रोश जताया
 की दिल भी  पत्थर बन आये ।

ये शब्द ही तो हैं
जो हर पल को बयान  करते हैं।
कुछ शब्द जो, हर पल में दस्तक देते हैं,
दिल में बस जाते हैं । 
ये शब्द हमें कितना कुछ सिखाते हैं। 



आँगन

देखा  था कभी उनको दिल के आँगन  में
बैठे थे चुप ,ख़ामोशी दबाए हुए अपनी बाँहों में ।

वही ख़ामोशी थी उनकी आवाज
जो बनाती  थी साज़  । 
उनकी हर  अदाएँ गाती थी गीत ,
बनाती थी मीत ,और लाती थी पास।

शायद हम फिर मिलेंगे ,
 इस आँगन में फिर  गुल खिलेंगे ।
 नजदीकियाँ बढेंगी,
कभी उनके भी दिल से आएगी आवाज ,
क्यूँ गए थे इस आँगन से हम ,
कुछ तो  हैं इस आँगन में खास । 





ओझल सपना 

आँखों से ओझल हुआ एक सपना ,
अब नजर ना आया,पर लगता था अपना । 
देखा था कभी उसको पलकों के पीछे 
एक प्यारी सी सूरत, नजर आती थी आँखों  मींचे । 

सूरत कुछ अनजानी-सी 
अनजानी वो मूरत थी ,जानी पहचानी सी । 
न जाने वो कहाँ गई
क्यों आँखों से ओझल हुआ ये सपना । 

अब तो, देखूँ जहाँ सच्चाई गुम हो जाती है 
 न जाने क्यूँ ,होश में रहकर भी नींद आती है । 
जी करता है फिर मिल जाए वो अपना
क्यों आँखों से ओझल हुआ ये सपना ।

सुना है सपने भी पूरे होते हैं 
बिना पानी के,बादल अधूरे होते हैं । 
बरस जाए पानी ,सूना है ये अंगना 
क्यों आँखों से ओझल हुआ ये सपना ।









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