Writing Room

Shortest Story

एक दिन बारिश आयी

कुछ लोग उसके शुक्रगुजार हुए ,
कुछ लोग उसे कोस रहे थे ,
कुछ लोगों को पता ही नहीं चला कब बारिश आई और चली गयी,
कुछ लोगों को पता ही नहीं है बारिश होती क्या है |

ऐसी ही कुछ होती है, मोहब्बत ।


ख़ुशी 

काफी समय पहले की बात है । एक जमींदार का सुखी और समृद्ध  परिवार हुआ करता था, जरुरत की हर चीज़ थी उनके पास। आसपास के लोगों मैं मान-सम्मान था उनका । जहाँ उनकी अच्छाई  से लोग प्रभावित थे वहीँ कुछ लोग उनकी ख़ुशी बर्दास्त नहीं कर पाते  थे । उस जमींदार का एक नौकर हुआ करता था श्याम, यूँ तो उसके मन मैं काफी श्रद्धा थी अपने मालिक के प्रति मगर कहीं न कहीं लालसा पनप रही थी उसके मन मैं ज्यादा से ज्यादा पाने की ।
एक दिन सुबह चाय पीते हुए उसने मालिक से कहा ।
"मालिक, आपके पास सबकुछ है "।
मालिक थोड़ा सा नज़रें तीखी करते बोला
"सब ऊपरवाले की देन है "।
" मालिक वो तो ठीक है मगर आपको नहीं लगता कुछ कमीं है "।
"श्याम, तुमको अपने काम पर ध्यान देना चाहिए" । जमींदार ने थोड़ा संकुचाते  हुए कहा।
पुरे दिन काम करने के बाद जमींदार खाना खाने गया मगर उसकी भूख जैसे गायब सी हो गयी थी। उसका मन जैसे कहीं और ही था। उसकी बीवी माया ने उसकी परेशानी की वजह पूछनी चाही।
"आज क्या बात है तुम इतने परेशान पहले तो कभी नज़र नहीं आये, कोई खास वजह "।
"नहीं माया , कोई खास बात नहीं है , मगर हमारे जीवन मैं कुछ कमीं है ।
माया को ये बात जान कर आश्चर्य हुआ ।
" ऐसा तुमसे किसने कहा" ।
" श्याम ने " ।
"अच्छा ऐसा है तो उसी से पूछ लेते की ऐसी क्या कमीं दिखी उसे जो हमें नज़र नहीं आई "।
" हाँ ये ठीक रहेगा "। थोड़ी राहत  तो मिली जमींदार को मगर उस रात उसे नींद नहीं आयी ।

सुबह की चाय पीते हुए जमींदार ने श्याम को पास बुलाया ।
" श्याम तुम्हारी जेब मैं कितने पैसे हैं"।
श्याम ने  मुस्कुराते हुए जवाब दिया ," साहब , मेरी जेब तो खाली  है"।
"तुम्हारी जितनी तनख्वाह है उतने पैसे मेरी जेब मैं हमेशा होते हैं "।
श्याम के चहरे पर अब भी मुस्कराहट थी।
मालिक ये देख कर और भी परेशान होते हुए बोला "तुमको क्या अंदाज़ा मेरी कमीं का "।
श्याम मुस्कुराते हए बोला "मालिक आपके पास सबकुछ है मगर "

TO BE CONTINUED...


एक किताब ( एक समझ )


किताब : लोग इसे कुछ भी कहें , मैं इसे किसी की सोच और सूझबूझ का परिणाम कहता हूँ | मेरा मानना है कि किसी की जीवनी ज्यादा रचनात्मक और प्रभावशाली होती है |
किताब जैसे किसी की परछाई होती है ,हर बडा इंसान अपनी परछाई छोड देना चाहता है और उसके लिए लिख देता है, एक किताब |

किसी ने खूब कहा है किताबों से बढ़कर कोई तुम्हारा दोस्त नहीं हो सकता ये बात सिर्फ वही समझ सकता है जिसने किताबों से दोस्ती करना सीखा है। जैसे दोस्ती के लिए सोच का नहीं समझ का होना ज़रूरी है वैसे ही किताबों की समझ का होना ज़रूरी है। किताबों को समझना मतलब उस व्यक्ति की भावनाओं को समझने जैसा है जिसने इसको लिखा । और यकीन मानो ये बातें भी करती हैं  पर ये तुम्हारे पास जाती नहीं तुमको अपने पास बुलाती हैं ।

आप किसी के व्यक्तित्व का पता उसकी पढ़ी हुयी किताबों से लगा सकते हो ये उसके फ्रेंड सर्किल की तरह होती हैं । किताबें हैं क्या ,किसी के विचारों का संग्रह । दोस्ती क्या है ,विचारों का मेल। हम किताब ही वही पढ़ते  हैं जो हमें पसंद हो मतलब मेल न होने का तो सवाल ही खत्म हो जाता है । दोस्त की बोली और आवाज मे  फर्क आ सकता है मगर किताबें हमेशा उसी आवाज में बोलती हैं जिसमें हम सुनना  चाहते  हैं । आपके दोस्त से आपकी बात बने न बने मगर यकीन मनो किताबों से आपकी बात ज़रूर बन जाती है ।
 

यूँ तो मुझे किताबें पढ़ने का बचपन से शौक रहा है मगर जाने अनजाने मैं हम सब एक किताब लिख रहे होते हैं और मैं भी लिख रहा हूँ एक किताब।


भारतवर्ष

यूँ तो अपने देश से हर किसी को प्रेम होता है , शायद यही मेरे प्रेम का आधार हो की ये मेरा अपना है या फिर विविधताओं से परिपूर्ण ये देश ही कुछ खास है |
अगर मैं इसकी छवी का आंकलन करूँ तो में इसे एक विभिन्न रगों की माला कहूँगा ,जिसका कोई मोल नहीं | जिसकी चमक ने पूरे संसार को अपनी ओर आकर्षित किया और धीरे धीरे सारा संसार इसका अभिन्न अंग बन गया |
इसके हर एक मोती में भरा पड़ा है ,जाति , धर्म और भाषा का एक विशाल संयोग जो इसको एक अद्भुत रंग देता है .....

मैं शराबी नहीं हुँ 

कभी आपने नशा मुक्ति केंद्र  के आगे  इतनी भीड़ देखी है जितनी नशा केंद्र(bar) के सामने ।

नशा मुक्ति केंद्र एक भूत बंगले की तरह खाली पड़े होते हैं। ऐसा लगता है जैसे इनका अस्तित्व ज़बरदस्ती बनाया गया हो।  उस बेचारे पर क्या बीतती होगी जो इश्स भूत बंगले का चौकीदार बना होगा ( डॉक्टर) । सोचो कहीं वो बेचारा गम में  ना पीने लगा हो की यहाँ कोई आता जाता ही नहीं हो।

किसी से मैंने नशा करने वाले से मैंने पूछा आप नशा मुक्ति केंद्र क्यूँ नही जाते ।  उनका जवाब था ,"क्यूंकी मैं पागलख़ाने नही जाना चाहता काफ़ी गहराई है इस बात में।

 हरिवंश राय जी  की एक कविता है मधुशाला। विश्वास मानो इस कविता को इस  कदर लिखा गया है जैसे कोई शिल्पकार मूर्ति बना रहा हो की कहीं कोई ग़लती ना हो जाए । फर्क सिर्फ इतना है की इसमें भगवान बोतल है ।इस कविता की हर लाइन में मानो पीनेवाले की आत्मा को  समर्पित हो।

शराब और मोहब्बत के नशे में न जाने कितने ही किस्से लिख़ डालें गए हैं कहीं न कहीं इतहास भी इसका गवाह है । मिसाल के तौर पर ना जाने कितने ही लोगों ने एक शराब की बोतल को अपने शब्दों से सजाया , हाल मैं एक गाना आया चार बोतल वोडका । समय के हिसाब से शब्द बदले मगर बोतल की शान में कोई कमी नहीं आई बल्कि चार चाँद लगे हैं । समय के हिसाब से इसने अपना रूप बदला है मगर चीज़ वही है, मदिरा।

मगर जब ये हद्द  से आगे बढ़कर  अपना असर शुरू करती है तो सारे स्टेटस बार हटा कर सबको एक लाईन  में खड़ा कर देती है , शराबी


लाइफ ऑफ़ कुत्ता

( इस पोस्ट की  किसी भी कुत्ते को या उसकी भावना को ठेस पहुँचाने की नहीं है अगर आप इसे अपने कुत्ते से relate करते हो तो उसे मात्र एक संयोग कहा जाएगा ।)

लाइफ ऑफ़ कुत्ता
गली में  कुछ पिल्लों ने जन्म लिया. पिल्लों को लगा की वो क़ुदरत का एक करिश्मा हैं। कुछ दिन ज़िन्दगी जीने की इच्छा लिये उन्होंने  अपने छोटे छोटे पावं से चलने की कोशिश करना शुरू कर दिया ।   लग रहा था मानो कोई रूई का गोला लूड़क रहा हो.

पिल्लों की माँ आती तो ऐसा लगता जैसे  मदर डेरी की बस खुशीओं की बहार लिए आ रही हो । बच्चे माँ  के पीछे भागते जैसे  लिमिटिड  स्टॉक हो या ऑफर चल रहा हो।  कितनी खुशहाल ज़िंदगी थी उनकी, खेलना कूदना , एक दूसरे को बिना दाँतों वाले  मुँह  से काटना , एक दूसरे की तरफ ऐसे  भोंकते जैसे  वो खुदतो जंगल के राजा हों और सामने वाला कुत्ता !

एक दिन गली के बच्चों  की नज़र उनकी खुशहाल ज़िन्दगी पर पड़ गयी , बच्चों  ने अपना-अपना पिल्ला चूज़ कर लिया, " देख श्याम , ये सफ़ेद वाला मेरा इसका नाम स्पीडरमैन" । बेचारे  पिल्लों ने कुछ दिन पहले ही अपनी आँखें  खोली थी की उनकी मुलाकात एक दूसरे करिश्मे से हो गयी जिसे हम इंसान कहते हैं.


पिल्लों को क्या पता था उनकी हालत कुत्ते की तरह होने वाली है.
बच्चों को अपना खिलौना मिल चुका था।  एक घास के मैदान मैं ले जाकर  कोई उनको स्पाइडरमॅन बना रहा था तो कोई सुपरमैन । पिल्लों ने अभी ठीक से चलना भी शुरू नही किया था की उनको उड़ने की ट्रैनिंग मिलने लगी थी।
पिल्लों को भी समझ नहीं आ रहा था की हो क्या रहा है उनके साथ क्या यही उनकी ज़िन्दगी होने वाली थी । छोटी छोटी मासूम सी आँखे जैसे कन्फ्यूज़्ड सी होकर अपने दूसरे पिल्ले भाईओं को देख रही थी ।  बोलना चाह रहीं  हो जैसे ,अब तक तो सब ठीक था ना जाने ये कुत्ते कहाँ से आ गये, हो सकता है हमको पास वाली कुतिया की नज़र लग गयी हो ।

शाम होने को आ गयी थी पिल्लों को मदर डेरी का इंतज़ार था वैसे भी आज उनको कमांडो ट्रेनिंग मिली थी ।
एक बच्चे  ने अपने पिल्ले के गले मैं रस्सी बाँधी , उस रस्सी ने पिल्ले को अहसास दिलाया की उसकी ज़िंदगी कुत्ते की है।
तभी किसी की आवाज़ आयी चलो यहाँ से इनकी माँ आने वाली है ।
-----------------------------------------------------------------------------------------to be continued KUTTA-2


महा-संग्राम(tug of war) SEIT v/s TEPROD


बात आज से 2 साल पहले की है। महा-संग्राम(tug of war) होने को था,आग दोनों तरफ जोर की लगी थी। दर्शकों का उत्साह  भी देखते ही बनता था। शाम का समय था,समुद्र की ठंडी हवायें भी वीरों के जोश में फूंक मारकर चिंगारी को हवा दे रहीं थी। ताकत और जोश का प्रदर्शन शुरू होने मैं सिर्फ कुछ ही समय बाकी था।
 कुछ समय बाद डंके की आवाज गूंजी और युद्ध प्रारंभ हुआ। एक तरफ थे SEIT(second year IT) के तुच्छ समझे जाने वाले योद्धा वहीँ दूसरी ओर थे TEPROD(third yr production) के भीमकाय बलवान, जिनको देखकर लोग जीतने की उम्मीद ही छोड़ थे। परन्तु SEIT का उत्साह भी चरम सीमा पर था। खेल शुरू हुआ,उड़ती धूल को देखकर ही पता लगाया जा सकता था की बात जीत की ,सम्मान की और शौर्य की थी। कोई टस से मस होने को तैयार नहीं था, सभी डटे हुए थे हाथ जमाये। अचानक से TEprod का पलडा भारी पड़ने लगा था। SEIT को देख कर  लग रहा था की उनके प्राण निकलने हो हैं पर जीत की हठ उन्होंने भी कर रखी थी। लोगों की सांसें रफ़्तार पकड़ रही थी, दुनिया जैसे थम-सी गयी थी और वो हुआ जिसकी कल्पना ही की जा सकती थी। TEPROD बिखरी हुई नजर आयी। खुशियाँ SEIT की झोली में थी।

SEIT का अंग होने के नाते हम भी काफी ख़ुशी थे और हमारी ख़ुशी में तारे तब लगे जब किसी हवा के झोंखे ने धीरे से नजदीक आते हुए कुछ कहा.....IT ROCKS। 

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