Wednesday 10 September 2014

मैं शराबी नहीं हुँ

मैं शराबी नहीं हुँ 

कभी आपने नशा मुक्ति केंद्र  के आगे  इतनी भीड़ देखी है जितनी नशा केंद्र(bar) के सामने । 

नशा मुक्ति केंद्र एक भूत बंगले की तरह खाली पड़े होते हैं। ऐसा लगता है जैसे इनका अस्तित्व ज़बरदस्ती बनाया गया हो।  उस बेचारे पर क्या बीतती होगी जो इश्स भूत बंगले का चौकीदार बना होगा ( डॉक्टर) । सोचो कहीं वो बेचारा गम में  ना पीने लगा हो की यहाँ कोई आता जाता ही नहीं हो। 

किसी से मैंने नशा करने वाले से मैंने पूछा आप नशा मुक्ति केंद्र क्यूँ नही जाते ।  उनका जवाब था ,"क्यूंकी मैं पागलख़ाने नही जाना चाहता काफ़ी गहराई है इस बात में। 

 हरिवंश राय जी  की एक कविता है मधुशाला। विश्वास मानो इस कविता को इस  कदर लिखा गया है जैसे कोई शिल्पकार मूर्ति बना रहा हो की कहीं कोई ग़लती ना हो जाए । फर्क सिर्फ इतना है की इसमें भगवान बोतल है ।इस कविता की हर लाइन में मानो पीनेवाले की आत्मा को  समर्पित हो। 

शराब और मोहब्बत के नशे में न जाने कितने ही किस्से लिख़ डालें गए हैं कहीं न कहीं इतहास भी इसका गवाह है । मिसाल के तौर पर ना जाने कितने ही लोगों ने एक शराब की बोतल को अपने शब्दों से सजाया , हाल मैं एक गाना आया चार बोतल वोडका । समय के हिसाब से शब्द बदले मगर बोतल की शान में कोई कमी नहीं आई बल्कि चार चाँद लगे हैं । समय के हिसाब से इसने अपना रूप बदला है मगर चीज़ वही है, मदिरा।

मगर जब ये हद्द  से आगे बढ़कर  अपना असर शुरू करती है तो सारे स्टेटस बार हटा कर सबको एक लाईन  में खड़ा कर देती है , शराबी

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