ख़ुशी
एक दिन सुबह चाय पीते हुए उसने मालिक से कहा ।
"मालिक, आपके पास सबकुछ है "।
मालिक थोड़ा सा नज़रें तीखी करते बोला
"सब ऊपरवाले की देन है "।
" मालिक वो तो ठीक है मगर आपको नहीं लगता कुछ कमीं है "।
"श्याम, तुमको अपने काम पर ध्यान देना चाहिए" । जमींदार ने थोड़ा संकुचाते हुए कहा।
पुरे दिन काम करने के बाद जमींदार खाना खाने गया मगर उसकी भूख जैसे गायब सी हो गयी थी। उसका मन जैसे कहीं और ही था। उसकी बीवी माया ने उसकी परेशानी की वजह पूछनी चाही।
"आज क्या बात है तुम इतने परेशान पहले तो कभी नज़र नहीं आये, कोई खास वजह "।
"नहीं माया , कोई खास बात नहीं है , मगर हमारे जीवन मैं कुछ कमीं है ।
माया को ये बात जान कर आश्चर्य हुआ ।
" ऐसा तुमसे किसने कहा" ।
" श्याम ने " ।
"अच्छा ऐसा है तो उसी से पूछ लेते की ऐसी क्या कमीं दिखी उसे जो हमें नज़र नहीं आई "।
" हाँ ये ठीक रहेगा "। थोड़ी राहत तो मिली जमींदार को मगर उस रात उसे नींद नहीं आयी ।
सुबह की चाय पीते हुए जमींदार ने श्याम को पास बुलाया ।
" श्याम तुम्हारी जेब मैं कितने पैसे हैं"।
श्याम ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया ," साहब , मेरी जेब तो खाली है"।
"तुम्हारी जितनी तनख्वाह है उतने पैसे मेरी जेब मैं हमेशा होते हैं "।
श्याम के चहरे पर अब भी मुस्कराहट थी।
मालिक ये देख कर और भी परेशान होते हुए बोला "तुमको क्या अंदाज़ा मेरी कमीं का "।
श्याम मुस्कुराते हए बोला "मालिक आपके पास सबकुछ है मगर "
TO BE CONTINUED...
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