Sunday 14 February 2016

KHUSHI

ख़ुशी 

काफी समय पहले की बात है । एक जमींदार का सुखी और समृद्ध  परिवार हुआ करता था, जरुरत की हर चीज़ थी उनके पास। आसपास के लोगों मैं मान-सम्मान था उनका । जहाँ उनकी अच्छाई  से लोग प्रभावित थे वहीँ कुछ लोग उनकी ख़ुशी बर्दास्त नहीं कर पाते  थे । उस जमींदार का एक नौकर हुआ करता था श्याम, यूँ तो उसके मन मैं काफी श्रद्धा थी अपने मालिक के प्रति मगर कहीं न कहीं लालसा पनप रही थी उसके मन मैं ज्यादा से ज्यादा पाने की ।
एक दिन सुबह चाय पीते हुए उसने मालिक से कहा । 
"मालिक, आपके पास सबकुछ है "। 
मालिक थोड़ा सा नज़रें तीखी करते बोला 
"सब ऊपरवाले की देन है "। 
" मालिक वो तो ठीक है मगर आपको नहीं लगता कुछ कमीं है "। 
"श्याम, तुमको अपने काम पर ध्यान देना चाहिए" । जमींदार ने थोड़ा संकुचाते  हुए कहा।
पुरे दिन काम करने के बाद जमींदार खाना खाने गया मगर उसकी भूख जैसे गायब सी हो गयी थी। उसका मन जैसे कहीं और ही था। उसकी बीवी माया ने उसकी परेशानी की वजह पूछनी चाही।
"आज क्या बात है तुम इतने परेशान पहले तो कभी नज़र नहीं आये, कोई खास वजह "। 
"नहीं माया , कोई खास बात नहीं है , मगर हमारे जीवन मैं कुछ कमीं है । 
माया को ये बात जान कर आश्चर्य हुआ । 
" ऐसा तुमसे किसने कहा" ।   
" श्याम ने " । 
"अच्छा ऐसा है तो उसी से पूछ लेते की ऐसी क्या कमीं दिखी उसे जो हमें नज़र नहीं आई "। 
" हाँ ये ठीक रहेगा "। थोड़ी राहत  तो मिली जमींदार को मगर उस रात उसे नींद नहीं आयी । 

सुबह की चाय पीते हुए जमींदार ने श्याम को पास बुलाया । 
" श्याम तुम्हारी जेब मैं कितने पैसे हैं"। 
श्याम ने  मुस्कुराते हुए जवाब दिया ," साहब , मेरी जेब तो खाली  है"। 
"तुम्हारी जितनी तनख्वाह है उतने पैसे मेरी जेब मैं हमेशा होते हैं "। 
श्याम के चहरे पर अब भी मुस्कराहट थी। 
मालिक ये देख कर और भी परेशान होते हुए बोला "तुमको क्या अंदाज़ा मेरी कमीं का "। 
श्याम मुस्कुराते हए बोला "मालिक आपके पास सबकुछ है मगर "

TO BE CONTINUED... 

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