आँगन
देखा था कभी उनको दिल के आँगन में
बैठे थे चुप ,ख़ामोशी दबाए हुए अपनी बाँहों में ।
वही ख़ामोशी थी उनकी आवाज
जो बनाती थी साज़ ।
उनकी हर अदाएँ गाती थी गीत ,
बनाती थी मीत ,और लाती थी पास।
शायद हम फिर मिलेंगे ,
इस आँगन में फिर गुल खिलेंगे ।
नजदीकियाँ बढेंगी,
कभी उनके भी दिल से आएगी आवाज ,
क्यूँ गए थे इस आँगन से हम ,
कुछ तो हैं इस आँगन में खास ।
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