Friday 6 December 2013

आँगन

आँगन


देखा  था कभी उनको दिल के आँगन  में
बैठे थे चुप ,ख़ामोशी दबाए हुए अपनी बाँहों में ।

वही ख़ामोशी थी उनकी आवाज
जो बनाती  थी साज़  । 
उनकी हर  अदाएँ गाती थी गीत ,
बनाती थी मीत ,और लाती थी पास।

शायद हम फिर मिलेंगे ,
 इस आँगन में फिर  गुल खिलेंगे ।
 नजदीकियाँ बढेंगी,
कभी उनके भी दिल से आएगी आवाज ,
क्यूँ गए थे इस आँगन से हम ,
कुछ तो  हैं इस आँगन में खास । 

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