ओझल सपना
आँखों से ओझल हुआ एक सपना ,
अब नजर ना आया,पर लगता था अपना ।
देखा था कभी उसको पलकों के पीछे
एक प्यारी सी सूरत, नजर आती थी आँखों मींचे ।
सूरत कुछ अनजानी-सी
अनजानी वो मूरत थी ,जानी पहचानी सी ।
न जाने वो कहाँ गई
क्यों आँखों से ओझल हुआ ये सपना ।
अब तो, देखूँ जहाँ सच्चाई गुम हो जाती है
न जाने क्यूँ ,होश में रहकर भी नींद आती है ।
जी करता है फिर मिल जाए वो अपना
क्यों आँखों से ओझल हुआ ये सपना ।
सुना है सपने भी पूरे होते हैं
बिना पानी के,बादल अधूरे होते हैं ।
बरस जाए पानी ,सूना है ये अंगना
क्यों आँखों से ओझल हुआ ये सपना ।
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