Wednesday 27 February 2013

A lost dream


                        ओझल सपना 


आँखों से ओझल हुआ एक सपना ,

अब नजर ना आया,पर लगता था अपना । 
देखा था कभी उसको पलकों के पीछे 
एक प्यारी सी सूरत, नजर आती थी आँखों  मींचे । 

सूरत कुछ अनजानी-सी 
अनजानी वो मूरत थी ,जानी पहचानी सी । 
न जाने वो कहाँ गई
क्यों आँखों से ओझल हुआ ये सपना । 

अब तो, देखूँ जहाँ सच्चाई गुम हो जाती है 
 न जाने क्यूँ ,होश में रहकर भी नींद आती है । 
जी करता है फिर मिल जाए वो अपना
क्यों आँखों से ओझल हुआ ये सपना ।

सुना है सपने भी पूरे होते हैं 
बिना पानी के,बादल अधूरे होते हैं । 
बरस जाए पानी ,सूना है ये अंगना 
क्यों आँखों से ओझल हुआ ये सपना ।

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