Tuesday 24 February 2015

भारतवर्ष

यूँ तो अपने देश से हर किसी को प्रेम होता है , शायद यही मेरे प्रेम का आधार हो की ये मेरा अपना है या फिर विविधताओं से परिपूर्ण ये देश ही कुछ खास है |
अगर मैं इसकी छवी का आंकलन करूँ तो में इसे एक विभिन्न रगों की माला कहूँगा ,जिसका कोई मोल नहीं | जिसकी चमक ने पूरे संसार को अपनी ओर आकर्षित किया और धीरे धीरे सारा संसार इसका अभिन्न अंग बन गया |
इसके हर एक मोती में भरा पड़ा है ,जाति , धर्म और भाषा का एक विशाल संयोग जो इसको एक अद्भुत रंग देता है .....

No comments:

Post a Comment