Sunday 1 March 2015

एक किताब


एक किताब ( एक समझ )

किताब : लोग इसे कुछ भी कहें , मैं इसे किसी की सोच और सूझबूझ का परिणाम कहता हूँ | मेरा मानना है कि किसी की जीवनी ज्यादा रचनात्मक और प्रभावशाली होती है |
किताब जैसे किसी की परछाई होती है ,हर बडा इंसान अपनी परछाई छोड देना चाहता है और उसके लिए लिख देता है, एक किताब

किसी ने खूब कहा है किताबों से बढ़कर कोई तुम्हारा दोस्त नहीं हो सकता ये बात सिर्फ वही समझ सकता है जिसने किताबों से दोस्ती करना सीखा है। जैसे दोस्ती के लिए सोच का नहीं समझ का होना ज़रूरी है वैसे ही किताबों की समझ का होना ज़रूरी है। किताबों को समझना मतलब उस व्यक्ति की भावनाओं को समझने जैसा है जिसने इसको लिखा । और यकीन मानो ये बातें भी करती हैं  पर ये तुम्हारे पास जाती नहीं तुमको अपने पास बुलाती हैं ।  

आप किसी के व्यक्तित्व का पता उसकी पढ़ी हुयी किताबों से लगा सकते हो ये उसके फ्रेंड सर्किल की तरह होती हैं । किताबें हैं क्या ,किसी के विचारों का संग्रह । दोस्ती क्या है ,विचारों का मेल। हम किताब ही वही पढ़ते  हैं जो हमें पसंद हो मतलब मेल न होने का तो सवाल ही खत्म हो जाता है । दोस्त की बोली और आवाज मे  फर्क आ सकता है मगर किताबें हमेशा उसी आवाज में बोलती हैं जिसमें हम सुनना  चाहते  हैं । आपके दोस्त से आपकी बात बने न बने मगर यकीन मनो किताबों से आपकी बात ज़रूर बन जाती है ।  
   

यूँ तो मुझे किताबें पढ़ने का बचपन से शौक रहा है मगर जाने अनजाने मैं हम सब एक किताब लिख रहे होते हैं और मैं भी लिख रहा हूँ एक किताब। 

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